हाँ मैं हु एक लड़की, एक नारी,
किसी की बेटी, किसी की बहन..
माँ की कोख से ही,
चुनोतियो का सामना करना पढ़ा हैं मुझको,
जन्म से पहले जीवन के लिए,
जन्म के बाद जीने के लिए….
मुझको देख लोगो की वोह उदासी,
अपनों की वो चिंता,
प्रायो की वोह गन्दी नज़र,
पढ़ने की मनाही,
आगे बढ़ने की लड़ाई..
इन सब ने झिंझोड़ कर रखा हैं मुझको..
ज़िन्दगी की इस दौड़ में
लगने लगा था मुझको हार रही हू मैं….
पर फिर आई एक अवाज़,
अंतर मन से मेरे,
एक चिंगारी उठी,
और
मैंने उसको आग में बदल डाला..
एक आग जिसमे,
उन सब नियमो, बंधनो को जलाना चाहती थी में..
जो कदम कदम पर लड़की को आगे बढ़ने से रोकते हैं,
एक बोझ सा महसूस करवाते हैं..
तड़पी, रोई,
बार बार गिरी,
पर हिमत ना हारी…
खुद को उठाया,
सख्त बनाया,
इस पुरुष प्रधानं समाज में,
कदम से कदम मिलाया..
इस अत्याचारों से भरे समाज में,
हर एक मनुष्य को कहना चाहती हू में आज,
सर उठा, आँखें खोल,
और देख,
आज वोह नारी तुझसे कम न हैं,
बच्चे पैदा करना, खाना बनाना,
घर सम्भालना, घर से बहार निकलना,
पैसा कमाना,
सब कर रही हैं वोह आज..
कहती हू आज में तुझको एह मनुष्य,
कर रही हू में आज वोह सब कुछ,
जिस पर गरूर कर, मुझको नीचा दिखाता था तू कभी,,
हैं हिम्मत तोह मैदान में आ,
आँखें खोल और लड़ नारी शक्ति से,
कब तक आपने मर्दानगी के बोल गाएगा..
कहना चाहती हू सबसे आज
नारी कमज़ोर नही, बलवान हैं..
हैं शक तोह देख आस पास,
और आँखों से पर्दा हटा,
देख उन सब महिलाओं को,
जो आसमान छू रही हैं आज….
नारी कमज़ोर नही बलवान हैं,
इसका उदारण तोह खुद भगवान हैं,
जिसने बच्चे पैदा करने की शयमता,
नारी को दी, नर को नही..