ऐसा भी कभी होता हैं क्या,
की कोई पराया अपना सा लगता हैं..
उन से मिलना अच्छा लगता हैं,
संग बैठना, हसना अच्छा लगता हैं,
और..
उनके न होने पर अपने भी पराये लगते हैं..
लगता हैं सब हैं,
पर होता कुछ भी नहीं….
आँखों पर एक पट्टी सी बंध जाती हैं,
आपने पन की पट्टी….
कभी साफ़ दिखता हैं
तो कभी धुंधलापन छा जाता हैं…
धुंधली सी इस पट्टी में,
कभी प्यार दिखता हैं,
तो कभी नफरत…
कभी घमंड,
तो कभी इंसानियत….
संग कुछ दूर तक चलने के बाद,
लौटने का मन करता हैं…
कोशिश तोह बहुत करते हैं हम,
पर यूही नही छूट जाता कुछ..
फिर एक समय आता हैं,
जब हिम्मत जवाब दे देती हैं,
और दिल बिखर जाता हैं..
और फिर वोह ही बात याद आती हैं…
अबे ओह पगली ,
पराये भी कभी अपने होते हैं क्या..?????