समय की क्या बात करते हो..

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तुम समय की क्या बात करते हो,

समय कब किसी का हुआ हैं..

तुम समय पर हक़ जताना चाहते हो,

समय पर कभी कोई हक़ जता पाया है कया?

बीते समय को ही देख लो,

कितना भी मांगलो वापिस,

कभी नही लोटता..

एक खेल ही तो हैं समय,

जो कभी जीत से तो कभी हार से मिलवाता हैं..

और फिर भी तुम समय की बात करते हो..

उस बचपन मे तुम बड़ा होना चाहते थे,

और अब,

उस बचपन के लिए रोते हो..

यह समय का ही तोह खेल हैं..

जब कोई तुम्हे बहुत पूछता हैं,

तब तुम समय न होने की बात करते हो..

और जब तुम तनहा होते हो,

तब एक पुकार के लिए भी तरस जाते हो..

आज तुम्हे वोह अपनों का बार बार याद करना परेशान कर देता हैं,

और कल उनही अपनों की

एक आवाज़ के लिए तरस जाओगे..

और फिर भी समय की तुम बात करते हो..

समय को कोन हरा पाया हैं?

कोई भी नही..

तो फिर क्यों आज मे रहते हुए

बीते कल की कामना करते हो

या

आने वाले समय से डरते हो..

समय ही तो है,

क्यों नही इस आज से रुबरु हो जाते?

क्या हुआ?

समय हैं यार..

गले लगा लो,

अच्छा हुआ तो

यादगार बन जाएगा..

और बुरा हुआ तो,

कुछ सीखाकर आराम से निकल जाएगा..

समय ही तो हैं..

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