हँसलो, प्यार से बोल लो,
किसी के लिए कितना भी कर लो..
अकसर लोग मतलब निकलने पर,
पराया महसूस करवा ही देते हैं..
ऐसा ही लगता है मुझे आज,
क्योंकि,
जब जब हसँती थी मैं,
तो साथ हसँते थे वो लोग,
जिन्हे आपना मानती थी मैं..
यहाँ रूख क्या बदला,
हल्की सी उदासी क्या छाई,
और वहाँ अपने ही बदल गए..
मानती हूँ..ज़िदगी है,
हँसाएगी तो रूलाएगी भी..
पर समय आने पर,
बेपरवा भी बनाएगी..
तभी तो उस दिन का इंतज़ार कर रही हूँ मैं,
जिस दिन बेपरवा बन..
आगे बढ़ती जाऊंगी मैं..
ही ही..
हसँती हूँ खुद पर आज,
इसलिए नही कि ठोकर लगी..
पर इसलिए..
कि बार बार लगने के बाद भी,
विश्वास करती रही,
और अपना मानती रही..
बच्ची नहीं हूँ मैं,
पर क्या पता था कि..
आजकल,
सच्चे, साफ़, मुह पर बोलने वालों को
ना-समझ माना जाता है.
–काव्या शर्मा
Bahut khub likha hai👌👌👌
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Thank you so much.😊
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