एक वक्त था, तन्हा सा..
गुज़र गया…
वो वक्त भी गज़ब था,
लोगो के पिछे यह दिल बोहाल था…
एसा था वो वक्त,
जब दिमाग का काम भी दिल कर रहा था…
वो अपने पन की चाह,
लम्बे साथ की उम्मीद…
ईन्ही सब मे उलझ गई खी मैं,
और
मेरी मुस्कूराहट….
हसने की कोशीश तो करती थी मै,
पर उस हँसी मे वो बात नही थी…
साथ निभाने के चक्कर मे,
यादो का पिछा ही नही छूड़ा पाई…
भूली नही थी कभी अपनी अहमियत,
बस दिल कही और लगा बैठी थी…
आज खुश हू, बेहद खुश हू…
कि वो वक्त गूज़र गया,
कभी ना लौटने के लिए…
सही कहा .
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