काश

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काश मैने जोखिम उठाया होता,

ना मै लौटती,

और

ना ही अवसरो की नगरी से मुह फेरती…

आज अफसोस है,

अफसोस है उन कदमो का जो कभी नही उठाये,

अफसोस है कि मैने लक्ष्य उसे नही बनाया…

पता तोह हमेशा ही था कि,

जो सच्चे दिल से चाहुँगी,

पालूगी एक चोट महनत से…

पर अफसोस,

वो चाहत मैने ही नही रखी कभी,

वरना…

वो मेरी चाहत होती,

और उसको पाकर आज मै आबाद होती…

काश…

 

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