ज़िन्दगी में हैं मौसम अनेक,
कैसे चांदनी रात,
या खिलखिलाता दिन रह सकता है हमेशा।
कभी धूप में सिक्ती हैं,
तो,
कभी सरदी में थरथराती है दुनिया।
इसी तरह,
कैसे हमारा ज़िंदगी का सफ़र एक सा रह सकता है,
यूं जो होने लगा,
तोह ज़िंदगी कहा ज़िंदगी रह जाएगी।
हर मौसम को चख कर देख,
स्वाद में फरक लगेगा।
हर शाम की बात अलग है,
हर दिन आया ख्याल अलग हैं।
बस,
खुद को ही हमसफ़र पाएगी,
जब भी ज़िंदगी में,
एक नया दिन, रात या शाम आएगी।