दर्द से नाता पुराना हैं,
नारी होना क्यों नहीं लोगो को गवारा हैं?
कहने को,
मैं मां, बीवी, बहन और बेटी हू,
फिर भी क्यो कितनो को
लाचार सी लगती हू?
लड़की, औरत और अबला नारी हूं मैं,
कम ना आंकना,
कमाल करना जानती हु मैं…
ज़मीन को ही नहीं,
आसमान को भी आपने नाम कर चुकी हू मैं…
क्यों तोलते हो किसी और के नज़रिए से,
आंख मिलाकर तोह देखो,
कामयाबियों की किताब हू मैं।
खुद को ही नहीं,
औरो को भी संभालना जानती हु।
औरत हू,
शक्ति का रूप हू मैं…
लगती हू कोमल,
पर,
अंदर से मजबूत हू मैं।