आँखे बंद करने से,
रोशनी रुक तो नही जाएगी ना!
बंद कर लेती हूँ आँखे अगर,
तो ऐसा भी नही की मुझे कुछ पता नही!
ज़िक्र ही तो नही होता,
अक्सर ज़िंदगिया बदल जाती हैं!
कैसे ज़िक्र ना करके,
चुपी की उम्मीद लगा लेता हैं ज़माना।
आँखे बंद नही होती,
बंद की होती हैं!
कुछ नज़र अंदाज़ किया होता हैं,
और
कुछ देखना चाहती नही ये आँखे!
ऐसे ही नही,
मज़बूती मिलती!
मगर,
ज़्यादा भी आँखे जो मूँद लो अगर,
हल्के में लेने लगता है ज़माना!
बन्द आंखों से दिखता अँधेरा
अँधेरा ही है सत्य यहा
सूर्य,पृथ्वी पर सदा अस्थाई
अँधेरा ही हैं स्थाई यहा।।
देख अँधेरा मिले ज्ञान वो
कहते उसको ध्यान सदा
ध्यान लगाओ सदा मिले
आत्मबल उसे कहे यहां।।
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