गुज़रना हैं,
इस लम्हे को,
ज़िंदगी को
और
एक दिन हमें भी।
कैसा संकोच हैं फिर,
जीने से, ए-मन?
नम आँखे हैं,
तोह क्या?
मुस्कान भी होगी ना एक दिन।
निराश आज कर रही हैं ये ज़िंदगी, बेशक,
पर खुश भी कभी ना कभी किया होगा ना तुम्हें!
खुद का भी होकर देख कभी,
ज़िंदगी कम पढ़ जाएगी जीने को।
क्यू भटकना उन नगरों में,
जिन गलियों में दिन भी ना कभी जगते हो?
रोशनी तो होती हैं,
मगर अंधेरे से ढकी…
हिम्मत रख,
बस चल दे।
सुना है अकसर,
दिल सच्चा हो,
मन साफ़ हो,
और
कर्म भले हो,
तो
डर भी आपसे डर जाता हैं,
बिखर कर भी आप टूटते नही…
कमज़ोर पड़ भी जाओ अगर,
मज़बूती का हाथ थामे रखते हो।
👌👌
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😇
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