उन जज़बातो ने क्या साजिश की थी,
कि दिल यूं डूबा की निकल ही ना सका…
कसूर किसी का नही था,
बस यह जज़बात गहरे थे
और
यह दिल कुछ कमज़ोर था…
आज भी इस कदर नुमाईश है,
कि कल डूबना पर जाऐ,
यह दिल डूब जाऐगा…
कभी चूर करते है खुद को यह जज़बात,
और कभी आगे बढ़ने का हौसला भी देते है…
यह तोह बस शब्द हैं कि,
डुबते दिल को भी जज़बातो के दंगल से बचा लेते है…
खुद कागज़ पर उतर,
मुझे ज़जबातो के वार से बचा लेते है…
वरना यह भावनाएँ इस कदर डसती है कभी-कभी मुझे कि,
वार भी अपना होता है,
और,
ज़खमी भी यह दिल होता है…
Bahut khub likha hai.👌👌
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Thank you so much. धन्यावाद !!
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बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है👌
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Shukriya 🙏😇
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